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किर्गिस्तान

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��ासमाची विद्रोह (रूसी: Басмачество, बासमाचेस्त्वो, Basmachi) सोवियत संघ और, सोवियत संघ के बनने से पहले, रूस की शाही सरकार के विरुद्ध मध्य एशिया में बसने वाले तुर्की भाषाएँ बोलने वाले मुस्लिम समुदायों के विद्रोहों के एक सिलसिले को कहते हैं जो सन् १९१६ से १९३१ तक चले। 'बासमाची' शब्द उज़बेक भाषा से लिया गया है, जिसमें इसका अर्थ 'डाकू' होता है और यह हिन्दी भाषा में पाए जाने वाले 'बदमाश' शब्द का एक रूप है।मध्य एशिया के तुर्किस्तान क्षेत्र में रूसी क़ब्ज़े और उसके बाद की साम्राज्यवादी नीतियों से वहाँ की पारंपरिक सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था काफ़ी गड़बड़ा गई थी जिस से वहाँ की जनता में रोष बन रहा था। विद्रोह की सबसे पहली चिंगारियाँ तब भड़कीं जब १९१६ में रूसी शाही सरकार ने प्रथम विश्वयुद्ध के लिए ज़बरदस्ती तुर्की मुस्लिम युवकों को फ़ौज में भारती करने की कोशिश कर रही थी। १९१७ की अक्टूबर समाजवादी क्रांति के बाद फ़रग़ना घाटी में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई जो अन्य क्षेत्रों में फैलने लगी। सोवियत संघ और रूसियों के खिलाफ़ हमले कई वर्षों तक बहुत से इलाक़ों में चले और इन उग्रवादियों को 'बासमाची' नाम दिया गया। कुछ अरसे तक बहुत से ग़ैर-शहरी क्षेत्रों में बासमाचियों का नियंत्रण था हालांकि उनपर सोवियत लाल सेना का दबाव निरंतर बना रहा। बहुत से बासमाची नेताओं ने पड़ोसी अफ़्ग़ानिस्तान को अपना अड्डा बनाया और अफ़्ग़ान मददगारों से सहायता भी लेते रहे। सोवियत संघ ने उस समय भारत पर शासन कर रहे ब्रिटिश राज पर भी बासमाचियों की मदद करने का इलज़ाम लगाया।

स्रोत: Wikipedia