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��ौबा (अरबी: توبة, पश्चाताप) एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है वापस लौटना। कुरान और हदीस में, इस शब्द का प्रयोग यह बताने के लिए किया गया है कि आल्लाह या ईश्वर ने जिसे मना किया है और जो उसने आज्ञा दी है उसमे वापस करना। इस्लामी धर्मशास्त्र में, ये शब्द किसी के पापों के लिए पश्चाताप करने, उनके लिए माफी मांगने और उन्हें त्यागने के लिए दृढ़ संकल्प को संदर्भित करता है। बहुत सारे पश्चाताप के बिना कवियों को माफ नहीं किया जाता है। तौबा जिसके बाद पापों को दोहराया नहीं जाता है उसे तवाबतुन नासुहा या शुद्ध तौवा कहा जाता है।

स्रोत: Wikipedia

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दोहा अर्द्धसम मात्रिक छंद है। यह दो पंक्ति का होता है इसमें चार चरण माने जाते हैं | इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के आदि में प्राय: जगण (।ऽ।) टालते है, लेकिन इस की आवश्यकता नहीं है। 'बड़ा हुआ तो' पंक्ति का आरम्भ ज-गण से ही होता है। सम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है अर्थात अन्त में लघु होता है। उदाहरण- बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागैं अति दूर।। मुरली वाले मोहना, मुरली नेक बजाय। तेरी मुरली मन हरे, घर अँगना न सुहाय॥हेमचन्द्र के मतानुसार दोहा-छन्द के लक्षण हैं - समे द्वादश ओजे चतुर्दश दोहक: समपाद के अन्तिम स्थान पर स्थित लघु वर्ण को हेमचन्द्र गुरु-वर्ण का मापन देता है.



'अत्र समपादान्ते गुरुद्वयमित्याम्नाय:' यह सूत्र विषद किया है। मम तावन्मतमेतदिह - किमपि यदस्ति तदस्तु रमणीभ्यो रमणीयतरमन्यत् किमपि न अस्तु

स्रोत: Wikipedia

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